‘ गु ‘का अर्थ अंधकार होता
‘ रु ‘का अर्थ प्रकाश ।
अंधकार हरने वाले ही
” गुरु ” होते खास ।
गुर सिखाने वाले गुरु से रहती आस ।
हर किसी के जीवन में
गुरु जरूरी है —-।
फिर वो मिट्टी का
द्रोणाचार्य ही क्यों न हो ?
बिना गुरु ज्ञान नही ,
ज्ञान बिना ध्यान नहीं ।
ज्ञान ही ध्यान है ,
गुरु ही महान है ।
लौकिक “गुरु”
आध्यात्मिक ” गुरु ”
दोनों को ही प्रणाम हैं ।
दोनों ही महान हैं ,
दोनों ही महान हैं ।
—सुरेन्द्र मुनोत , कोलकाता प . बं
Vande guruvaram
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ध्यान मुलं गुरुर मूर्ति ,पूजा मुलं गुरु पदम् !
मन्त्र मुलं गुरुर वाक्यं, मोक्ष मुलं गुरुर कृपा !!
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गुरु देव की कृपा से ही वह ज्ञान उपलब्ध होता है जो मुक्ति से भी बड़ी भक्ति की राह दिखाता है ! यद्यपि शास्त्र और सभी धर्म ग्रन्थ गुरु हैं फिर भी गुरु की आवश्यकता है। गुरु की आवश्यकता सभी पूर्व के महापुरुषों द्वारा कही गयी है ! भगवान् शिव, श्रीकृष्ण एवं भगवान राम तक के समय में भी गुरु परम्परा है ! यद्यपि राम स्वयं परब्रह्म परमात्मा है तथापि मानव देह में मनुष्यों को धर्म शिक्षण हेतु वो भी गुरु परंपरा अपनाते है ताकि सामान्य मानव को गुरु परम्परा का महत्व समझ में आ सके ! अभिप्राय यहाँ पर केवल इतना है कि बिन गुरु ज्ञान नही है और बिना ज्ञान कुछ भी नही ! बिना ज्ञान तो मानव को मानव भी नही कहा जा सकता है !