Surendra munot
State chief reporter west bengal
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तेरापंथ धर्म संघ के अधिशास्ता शांतिदूत आचार्य महाश्रमण के सानिध्य में आत्म शुद्धि के महान पर्व संवत्सरी का आयोजन…
भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा का शांतिदूत ने किया वर्णन…
संवत्सरी महापर्व पर हजारों लोगों ने किए उपवास
3-9-2019 कुंबलगोडू बेंगलुरु आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना केंद्र का महाश्रमण कन्वेंशनल हॉल आज श्रद्धालुओ से जनाकीर्ण नजर आ रहा था। मौका था, जैन धर्म के महान पर्व संवत्सरी का।
इस बार की संवत्सरी जैन एकता की दृष्टि से विशेष भी थी क्योंकि आचार्य श्री महाश्रमण की पहल पर स्थानकवासी एवं तेरापंथ संप्रदाय एक साथ यह पावन पर्व मना रहा था। शांतिदूत के चरणों में इस अवसर पर धर्म आराधना करने के लिए केवल बेंगलुरु के ही नहीं अपितु मैसूर, मांड्या, चिकमंगलूर, चेन्नई आदि दक्षिण भारत के अनेक क्षेत्रों से हजारों श्रावक-श्राविका भाग ले रहे थे।
प्रातः 7:00 बजे से ही कार्यक्रम का शुभारंभ हो गया। सर्वप्रथम साध्वी रचनाश्रीजी, साध्वी कीर्तिलताजी, साध्वी कंचनप्रभाजी ने आगम सूत्र के द्वारा प्रेरणा प्रदान की।
अध्यात्म के शिखर दिवस पर शिखर पुरुष आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना देते हुए कहा संवत्सरी मैत्री और क्षमा से जुड़ा हुआ दिन है। आज के दिन चौरासी लाख जीव योनियों से खमतखामना की जाती है। आज के दिन वैर भाव , राग-द्वेष को कम कर मन की गाँठे खोल लेनी चाहिए। यह आत्म शुद्धि का महान पर्व है। तत्पश्चात आचार्य प्रवर द्वारा गुरुदेव तुलसी द्वारा रचित संवत्सरी गीत का संगान किया गया।
भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा का वर्णन करते हुए शांतिदूत ने आगे कहा कि प्रभु जब 9 वर्ष के हुए तब राजा सिद्धार्थ ने उन्हें कलाचार्य के पास अध्ययन करने के लिए भेजा। कलाचार्य ने देखा कि वर्धमान का ज्ञान उनसे भी ज्यादा तो उन्होंने प्रभु को ससम्मान वापस भेज दिया कि यह तो मुझे पढ़ा सकते हैं मैं इन्हें क्या पढ़ाऊ। माता-पिता के स्वर्गवास के 2 वर्ष पश्चात प्रभु ने दीक्षा ग्रहण की। आचार्य प्रवर ने फिर ग्वाले, चंडकौशिक, शूलपानी आदि के कथानक के बारे में बताया। भगवान की लगभग 12 वर्ष की साधना में केवल 329 दिन पारना कर रहे । शेष उन्होंने तपस्या की। कार्तिक महीने की अमावस्या को प्रभु ने शुक्ल ध्यान ज्ञान को प्राप्त कर मुक्ति का वरण किया।
वक्तव्य के क्रम में आगे विचार रखते हुये मुख्य नियोजिकाजी, साध्वी श्री विश्रुतविभाजी ने पर्यूषण संवत्सरी की महत्ता बताते हुए कहा यह आत्मनिरीक्षण का पर्व है। मन पर चढ़े हुए मेल को धोने का अवसर है। साध्वीवर्या स्ंबुद्यशाजी “आत्मा की पोथी पढ़ने का यह सुंदर अवसर आया है” गीत का संगान किया। मुख्यमुनी महावीर कुमार जी ने कहा कि संवत्सरी महापर्व अलौकिक पर्व है। अपने आप ने पवित्र बनने का पर्व है। अगर कोई इस दिन भी खमतखामना नहीं करता है तो उसके सम्यक्त्व की हानि होती है।
कार्यक्रम मे मुनि सुधाकर कुमार जी , मुनि गौरव कुमार जी , साध्वी प्रांजलयशा जी, आदि ने भावों की अभिव्यक्ति दी। साध्वी वृंद ने समूहिक गीत का संगान किया।
संवत्सरी के अवसर पर शाम को सामूहिक प्रतिक्रमण भी हुआ। साथ ही हजारों लोगों ने 8 प्रहरी, 6 प्रहरी, व 4 प्रहरी पौषध भी किया।
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जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा