150 बेटीयों की शादी करने के बाद भी माँ नही है लीलाबाई किन्नर… सरुपाराम प्रजापत, जिला ब्यूरो चीफ, बाडमेर, राजस्थान, Key Line Times

बाड़मेर, 150 बेटियों की मां हैं लीलाबाई। सुनकर बड़ा आश्चर्य होता है , लेकिन यह सच है। भगवान ने भले ही किन्नर लीलाबाई ने अपनी कोख से किसी बच्चे को जन्म नहीं दिया लेकिन 150 से अधिक लडकियां ऐसी हैं जिनपर किन्नर लीला सगी मां से भी ज्यादा प्यार बरसाती है।
गरीबी व मुफलिसी में पली इन बेटियों को विदा करने के लिए मां-बाप के पास जब कुछ नहीं होता था तो लीलाबाई ने आगे आकर एक मां का फर्ज अदा करती थी। बेटियों को गोद लेने के साथ ही बेटी को दहेज में दिए जाने वाले गृहस्थी मे काम आने वाले सामान सहित उसके ब्याह का पूरा खर्चा उठाती थी। किन्नर लीलाबाई ने लगभग 30 वर्ष पहले एक गरीब परिवार की बेटी को गोद लेकर उसकी शादी करवाई जो कि ये सिलसिला आज तक चल रहा है। इसके बाद बाड़मेर जिले में जहां कहीं भी गरीब घर की बेटी के बारे में सुनती तो उनसे मिलकर बेटी की सारी जिम्मेदारी लेकर उसके शादी-ब्याह का अधिकांश खर्चा स्वयं लीलाबाई उठाती है। किन्नर लीला ने बेटियों के लिए मां का फर्ज अदा किया तो बेटियां आज भी उसे जन्म के बाद पालनहार के रूप में देखती है। यही वजह है कि ब्याही गई बेटियां आज भी पीहर आती हैं तो घर जाने से पहले किन्नर लीला के घर पहुंचकर आशीर्वाद लेती हैं। लीलाबाई के तीस साल पहले शुरू हुए इस सफर में अब तक 150 से अधिक बेटियों को गोद लेकर उनकी जरूरत के मुताबिक खर्च उठाकर शादी-विवाह करवाया। इतना ही नहीं लीला ने बताया कि भविष्य में जब तक वह जिंदा है। इसी तरह की बेटियों की मदद करती रहेगी। इसके साथ ही लीला का बड़ा सपना है गाय माता का संरक्षण करना। यजमानों से मिली वाली राशि का एक फिक्स हिस्सा वह गौ सेवा के लिए निकालती है। वहीं, कच्ची बस्ती में रहने वाली लीलाबाई के आस-पड़ोस में रहने वाले गरीब परिवारों के बच्चों के लिए पाठ्यसामग्री, कपडों सहित शिक्षण का जिम्मा भी संभाल रही है। स्कूलों में बच्चों को जरूरत की सामग्री तो गायों के लिए हरा चारा व पानी की जिम्मेदारी संभाल रही है। बालोतरा किन्नर समाज की अध्यक्ष लीलाबाई के घर में आधा दर्जन शिष्य रहते हैं, जिनको लीलाबाई आमजन से जुड़कर उनके सुख-दु:ख में भागीदार बनने की सीख देती हैं। किन्नर लीला गरीब बेटियों के साथ ही जरूरतमंद की सेवा के लिए हरदम आगे रहती हैं। बेटियों की शादी के अलावा वे अपनी कमाई का चौथा हिस्सा गो सेवा व शिक्षा पर भी खर्च करती है। कच्ची बस्ती में रहने वाली लीला बाई के आस-पड़ोस में अधिकांश दिहाड़ी मजदूर व आर्थिक हालात से कमजोर परिवार रहते हैं, जिनके बच्चों के लिए स्कूल फीस, किताबें, पोशाक व जूते आदि खरीदना बूते से बाहर की बात है उन बच्चों के शिक्षण का जिम्मा लीला बाई संभाल रही हैं। इसके अलावा समय-समय पर कच्ची बस्तियों वाले स्कूलों में सर्दी के मौसम में स्वेटर, जूते, पोशाक व पाठ्य सामग्री आदि वितरित करती है। इसके अलावा गायों के चारा-पानी के लिए भी लीलाबाई कमाई का खासा हिस्सा लगा देती है। प्रतिदिन गायों के लिए हरा चारा व पानी की व्यवस्था की जा रही है, जिसकी देखरेख वह स्वयं करती है। यही वजह है कि किन्नर लीलाबाई के नाम के आगे गोभक्त भी लगाया जाता है।

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