जेपी मौर्या, ब्यूरो चीफ, गाजियाबाद। अर्थला झील की जमीन पर बने 550 मकानों पर लटकी ध्वस्तीकरण की तलवार से कॉलोनी के लोग सीएम के दरबार में पहुंचे हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर पूर्व में जारी एक शासनादेश का हवाला दिया है, जिसमें लिखा है कि तालाब पर बने मकानों को हटाया जाना संभव न हो तो उनकी जगह दूसरे तालाब खुदवाए जाएं। अर्थला के पार्षद ने मकान न तोड़े जाने की मांग की है। उनका कहना है कि एनजीटी के आदेश पर अगर मकान तोड़े तो इससे पहले 550 परिवारों के पुनर्वास का इंतजाम करें।
अर्थला के पार्षद का कहना है कि 550 परिवार करीब 50 साल से अर्थला के खसरा संख्या-1445 की जमीन पर मकान बनाकर रह रहे हैं। 2017 में भी नगर निगम ने लोगों को इस जमीन को खाली करने के नोटिस दिए थे। उनका कहना है कि यहां रह रहे लोग एससी-एसटी और ओबीसी श्रेणी में आते हैं और मई 2009 में जारी हुए शासनादेश के तहत लाभ पाने के पात्र हैं। 2016 में रविंद्र नाथ बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के एक इसी प्रकार के केस में हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को लाभ दिए जाने के आदेश दिए थे। उनका कहना है कि 550 परिवारों को सरकार न उजाड़े। पार्षद और कॉलोनी के लोगों का कहना है कि वर्तमान में भी अर्थला झील मौजूद हैं और आबादी से दूर हैं। ऐसे में यहां बसे लोगों को हटाया जाना गलत है।
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हमारे पुनर्वास के लिए पहले इंतजाम करे सरकार
कॉलोनी के लोगों का कहना है कि एक तरफ प्रदेश सरकार आवासहीन गरीबों को मुफ्त में आवास दे रही है, दूसरी ओर लोगों के मकान तोड़कर उन्हें आवासहीन बनाया जा रहा है। पार्षद का कहना है कि सरकार डूडा या प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत प्रभावित हो रहे 550 परिवारों के लिए मकानों का इंतजाम करें, इसके बाद कार्रवाई करे। उनका कहना है कि बिना पुनर्वास नीति के जिला प्रशासन या नगर निगम ने मकान तोड़ने की कार्रवाई की तो उग्र आंदोलन करेंगे। लोग सड़कों पर उतरेंगे।